गुरु ने बनाया अंगुलिमाल तथागत ने बनाया संत

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Last Updated on 2 years by Dr Munna Lal Bhartiya

अंगुलिमाल की कहानी

प्राचीन काल में मगध राज्य के जंगलों में अंगुलिमाल नामक एक हिंसक व्यक्ति का राज हुआ करता था, दाहिने हाथ की 1000 उंगलियां काट कर गले में माला बनाकर पहनना उसका लक्ष्य था। 999 लोगों की हत्या कर उनकी उंगली की माला बना चुका था। सिर्फ एक और उंगली की आवश्यकता थी उसकी माला को पूरी होने के लिए उस समय पूरा मगध उससे परेशान था उस रास्ते से जो भी व्यक्ति गुजरता था, तो वह उसकी हत्या कर उंगली को काटकर अपनी माला में डाल लिया करता था। 

एक दिन मगध राज्य में तथागत गौतम बुद्ध पधारे तो वहां की जनता ने उन्हें अपनी समस्या सुनाई उन्होंने बताया कि कैसे उसने अपना आतंक मगध में मचा रखा है और वह अपने आपको संसार का सबसे शक्तिशाली आदमी समझता है। तथागत ने वहां के लोगों की सारी आपबीती सुनी और ध्यान मग्न होकर उन्होंने अंगुलिमाल के अतीत के विषय में जानकारी प्राप्त की।

अंगुलिमाल का जन्म

अंगुलिमाल का जन्म एक ब्राह्मण के घर हुआ था, उनके जन्म के बाद जब उनके पिताजी ने उनकी कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई तो उन्होंने उनके पिताजी को बताया कि यह बालक पिछले जन्म का राक्षस है और अब भी राक्षसी नक्षत्र में पैदा हुआ है यह बालक हिंसा से भरा हुआ है। यह जानने के बाद उनके पिताजी ने उसका नाम अहिंसक रखा और करुणा दया के भाव को सिखाया और हर प्रकार की हिंसा से दूर रखा है। लेकिन जब वह बड़ा हुआ तो उनके पिताजी ने स्नातक की शिक्षा के लिए उन्हें एक ऋषि के आश्रम में भेजा जहां से उन्होंने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। 

वह तीव्र बुद्धि, प्रखर और सभी कामों में निपुण थे। जिसकी वजह से उनके सहपाठी उनसे ईर्ष्या करते थे, अहिंसक से उनके गुरु और गुरु माता बहुत खुश रहा करते थे लेकिन यह बात अहिंसक के सहपाठियों को बिल्कुल पसंद नहीं थी इसलिए उन्होंने पहले तो धीरे-धीरे अहिंसक के खिलाफ गुरुजी के कान भरे अंत में गुरु जी को यह बोल दिया कि अहिंसक गुरु माता पर कुदृष्टि रखता है। 

यह सुनकर गुरु जी क्रोधित हो उठे और सच जानने का प्रयास भी नहीं किया और शिक्षा समाप्त होने के पश्चात गुरु दक्षिणा में अहिंसक से 1000 उंगलियां काटकर लाने के लिए कहा गुरु जी ने यह सोचा कि अपनी खुशी से तो कोई इसे अपनी उंगली देगा नहीं और इसी मुठभेड़ में एक दिन यह भी मारा जाएगा जब तथागत को उस रास्ते के बारे में पता चला कि कैसे अहिंसक अंगुलिमाल बन गया तो उन्होंने उस रास्ते से गुजरने का फैसला किया जहां अंगुलिमाल रहता था 

तथागत गौतम बुद्ध

जब तथागत उस रास्ते से गुजरे तो अंगुलिमाल ने उन्हें देखकर ऊंचे स्वर में आवाज लगाई और कहा रुको लेकिन तथागत नहीं रुके फिर वह उनके पीछे दौड़ लगाने लगा तो तथागत धीरे-धीरे ही चल रहे थे, लेकिन इतनी दौड़ लगाने के बाद भी वह उन तक नहीं पहुंच सका अहिंसक और क्रोधित हो गया और तेज दौड़ता हुआ उनके आगे खड़ा हो गया। और बोला कि मैं आपको तब से आवाज लगा रहा हूं आप रुके क्यों नहीं ?क्या आपको मुझसे डर नहीं लगता? 

मैं इस संसार में सबसे शक्तिशाली और ताकतवर हूं इस बात पर तथागत मुस्कुराने लगे तो अंगुलिमाल और क्रोधित होकर बोला कि मुझे आपकी दाहिने हाथ की उंगली चाहिए तो तथागत कि बोले ले लेना लेकिन उससे पहले मुझे एक वृक्ष से कुछ पत्ते तोड़ कर दो अंगुलिमाल ने ऐसा ही किया वह कुछ पत्ते तोड़कर लाया और तथागत को देने लगा लेकिन तथागत ने लेने से इंकार कर दिया और उससे कहा कि तुमने जहां से पत्ते तोड़े हैं वहां इन्हें वापस लगा दो यह सुनकर अंगुलिमाल चकित रह गया और बोला कि टूटा हुआ पत्ता वापस कैसे जोड़ सकता है तो तथागत ने कहा कि तुम तो संसार में सबसे ताकतवर अपने आप को कहते हो तो इस टूटे हुए पत्ते को वापस जोड़ कर दिखाओ ।

ने कहा कि यह असंभव है तो वह बोले कि तुम्हारे लिए लोगों का जीवन छीनना कितना आसान है लेकिन क्या तुम किसी को भी उसका जीवन वापस लौटा सकते हो अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो तुम्हें उनके प्राण लेने का अभी कोई अधिकार नहीं अगर आप किसी को जीवन दे नहीं सकते तो उसके प्राण ले कैसे सकते हो यह सुनकर अंगुलिमाल के हाथ से कटार छूट कर नीचे गिर गई और उसकी आंखों में करुणा भरे आंसू आ गए तथागत ने उसे समझाया कि संसार में सबसे ताकतवर वह है जो लोगों को देना जानता हो चाहे वह खुशी हो क्षमा हो या जीवन।

यह बातें अंगुलिमाल के ह्रदय में उतर गईं और अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तित हो गया उसने हिंसा के मार्ग को छोड़कर अहिंसा का मार्ग अपना लिया उस दिन के बाद से अंगुलिमाल संत बन गए और उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन दया और करुणा के भाव के साथ असहाय व पीड़ित लोगों की सेवा में व्यतीत कर दिया।

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