Last Updated on 2 years by Dr Munna Lal Bhartiya
गणतंत्र दिवस पर विशेष
देश के एक ऐसे भूतपूर्व सैनिक के परिवार के बारे में बताना चाहता हूं । मेरे पिता स्वर्गीय छोटेलाल जो एक भूतपूर्व सैनिक रहे। उन्होंने आजादी के आंदोलनों में भाग लिया। परंतु किसी कारणवश वह 11जुलाई 1947 को पद से पदमुक्त (discharge) हुए। मेरी माता जी का नाम स्वर्गीय श्रीमती राम बेटी है, हम दो भाई एक बहन हैं। मेरी माता जी को एक सैनिक की पत्नी होने के बावजूद भी पेंशन अथवा अन्य कोई सहायता नहीं मिली क्योंकि अल्प समय में ही मेरे पिताजी का देहांत हो गया उस समय मेरी उम्र लगभग 10 वर्ष रही होगी ।
मुझे कुछ याद है कि मेरे पिता के देहांत के समय मेरी माता जी के सामने इतनी विपरीत परिस्थितियां थी कि मेरे पिताजी का अंतिम संस्कार करने के लिए लकड़ियों की भी व्यवस्था नहीं थी। तो मजबूरन मेरे परिवार द्वारा मेरे सैनिक पिता को चंबल नदी में जल दाग दिया गया पिताजी के देहांत के बाद परिस्थितियां और भी विकराल होती चली गई । परिवार व रिश्तेदारों ने भी कोई साथ नहीं दिया।

मेरी माता जी हम भाई बहन का भरण- पोषण करने में भी असमर्थ हो गईं ऐसी परिस्थिति में मेरी माता जी ने हम बहन भाइयों को लेकर गांव छोड़ दिया तो उस वक्त मुझे याद है कि हमने 3 दिन तक खाना नहीं खाया था ।
मेरी माता जी ने मेरे ननिहाल में शरण ली कुछ समय वहां शरण मिली तो हमें दो वक्त का खाना मिला उसके बदले में मामाओं के एहसान को चुकाने के लिए मुझे छोटी सी उम्र में ही लोगों की मेहनत मजदूरी करनी पड़ी ।
इस प्रकार विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए ईश्वर की कृपा से मेरी माता जी को दूसरा सहारा स्वर्गीय श्री हेतराम के रूप में मिला तथा हम भाई-बहन को पिताजी के रूप में एक साथ मिला। जिन्होंने हम भाई-बहन की परवरिश में व शिक्षा-दीक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी। समय अनुसार जब मैं कुछ पढ़ लिख कर जागरूक हुआ तो मैंने माताजी को एक सैनिक की पत्नी का हक दिलाने का प्रयास किया ।
मैंने अपनी माता जी को पेंशन तथा अन्य सहायता दिलवाने हेतु जिले के अधिकारी से लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्रियों तक अपनी बात पहुंचाई । लेकिन कहीं कोई ठोस सुनवाई नहीं हुई और जब मैं समाज सेवा के साथ जुड़ गया तो मेरे अत्यधिक प्रयास पर मेरी माता जी को सैनिक कल्याण बोर्ड इटावा द्वारा पेंशन देय स्वीकार भी कर लिया गया। लेकिन मेरा प्रयास भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया स्वीकृत होने के बावजूद भी मेरी माता जी को पेंशन नहीं मिली। क्योंकि आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण माताजी को पेंशन दिलवाने हेतु मेरे पास देने के लिए ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे भ्रष्ट लोगों की मुट्ठी गर्म हो सके । जबकि मेरे पिताजी को द्वितीय विश्व युद्ध के भूतपूर्व सैनिक का दर्जा भी दिया गया। तथा मेरी माताजी का न्याय हेतु संघर्ष करते हुए 16 अक्टूबर 2011 को निधन हो गया। मैं बताना चाहता हूं कि मेरे माता-पिता की परिस्थिति ने मुझे सामाजिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया मेरे परिवार को बेशक न्याय नहीं मिला लेकिन मैं इस अन्याय को ही अपनी ताकत बना कर अपनी कलम के सहारे पीड़ितों को हरसंभव न्याय दिलवाने का प्रयास करता हूं ।
देश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी मजबूत है कि देश की आन बान शान के लिए जीने तथा मरने वाले लोगों के परिवार भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं आज हमारे देश को आजाद हुए 77 वर्ष पूर्ण हो गए हैं हमारे देश के अधिकांश नागरिक आज भी गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं वह भी अपनों के ही हाथों।
क्या है आजादी के मायने
आज भी हमारा देश अधिकांशत गरीबी अमीरी,जातिवाद,भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियों की मार झेल रहा है । आज भी अक्सर हमारे देश की वही तस्वीर नजर आती है जो आजादी से पूर्व थी आज भी हमारे देश के अधिकांश नागरिक आजादी के अर्थ से ही अनभिज्ञ हैं तो आजादी व सम्मान का जीवन कैसे जी सकते हैं?
इनके लिए क्या है आजादी के मायने मेरे परिवार की तरह देश में जाने कितने ऐसे सैनिक परिवार होंगे जो अपने हक से वंचित होंगे कब समझ पाएंगे गरीब, पीड़ित अपनी आजादी के मायने? मैं चाहता हूं कि मेरे प्रयास से गरीब पीड़ितों को हर सभव न्याय मिले यही है मेरे लिए आजादी के मायने।
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