Last Updated on 2 years by Dr Munna Lal Bhartiya
Written By : Sanjay Kumar
आज मैं अकेला बैठकर कुछ लिख रहा था और सोच रहा था, कि इंसान अपने सब दुख दर्द भूल जाता है और कल्पना की दुनिया में खो जाता है मेरे जहन में आया केवल कल्पना को सजीव बनाकर हमारे दुखों को भुलाकर एक अलग दुनिया में पहुँचा जा सकता है तो वह है सिनेमा जिसके हजारों नाम है कोई फिल्म कहता है कोई पिक्चर कहता है कोई बॉलीवुड कहता है कोई हॉलीवुड कहते हैं जिसको जो नाम अच्छा लगता है।
वह कहने लगता है सिनेमा एक ऐसी दुनिया है जिसका आकर्षण कभी कम नहीं हुआ पर समय-समय पर बदलाव जरूर हुआ है पर इंसान की भावना में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जब इंसान फिल्में देखता है तो कभी खुद को नायक कभी खलनायक कभी दुनिया का बेताज बादशाह तो कभी दुनिया को बचाने वाला मसिया जाने कितने रूपों में स्वयं को देखता है और खो जाता है कल्पनाओं के उस दुनिया में जहां पर कोई अमीर नहीं है, और ना ही कोई गरीब है सब बराबर हैं बदल देता है।
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बच्चों के संस्कार उनकी भाषाएं उनकी आदतें चलने का ढंग खाने-पीने का ढंग कितना सुंदर ताकतवर है कल्पना का यह जहां कल्पनाओ के सिनेमा से अच्छी सीख लेकर जीवन को बदलते देखा है जो बात समझना नहीं चाहता इंसान को सिनेमा से समझते देखा है सिनेमा गीत संगीत जाने कितने सालों से सजाया जाता है वही प्यार अपनापन जाने कितने जिंदगी के रंगों में दिखाया जाता है किसी के बीते हुए जख्मों को भरता है तो किसी के जख्मों को सिलता है कोई अपने प्यार को देखता है, तो कोई अपने बिछड़ते नायक के रूप में देखता है जिस भाषा जिस देश को कभी देखा नहीं उसकी संस्कृति उसकी जिंदगी को दर्शाता है ऐसा है।
कल्पनाओं का सिनेमा प्राचीन संस्कृति से लेकर आज की आधुनिक संस्कृति तक कल्पनाओं की दुनिया का सिनेमा रहा है प्राचीन काल में नाटक कविताएं, गीत, कहानी, कविता, संगीत ऐसी जाने कितनी विधाओं के रूप में सबका मनोरंजन करता है समय के साथ दुनिया बदली तो सिनेमा में बदलाव हुआ आज आधुनिक रूप में वह पर्दे पर दिखाई देने लगता है प्राचीन काल के सजीव से भी ज्यादा सजीव दिखाई देने लगता है विज्ञान की नई नई परिभाषाओं को प्रदर्शित करता है विज्ञान का प्रयोग करके विज्ञान को बढ़ावा देने का काम करता है सिनेमा,जो देखने समझने और सोचने में बड़ी मुश्किल लगती है तो उसका भी हल करता यह कल्पनाओं का सिनेमा।