Last Updated on 1 year by Dr Munna Lal Bhartiya
बीते 02 जुलाई 2024 को हाथरस में बाबा साकार हरी के सत्संग के दौरान हुए बेहद दुखद घटनाक्रम बहुत निदंनीय है जिसमें करीब सवा सौ लोग अपनी जान गवां चुके हैं अनेको लोग घायल हैं । मैं डॉ मुन्नालाल भारतीय हादसे में जान गवाने वाले सभी लोगो को श्रृद्धांजलि अर्पित करते हुए मृतकों के परिवारिजनों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं और घायलों के जल्द स्वास्थ लाभ की कामना करता हूं । चूंकि यह बहुत ही विचारणीय तथ्य है कि अंधविश्वास के भ्रमजाल ने कितने लोगों को मौत के मुंह मे धकेल दिया, कितने परिवारों को उजाड़ दिया।
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यह दुखद घटनाक्रम अंधविश्वास में डूबे हुए लोगों के लिए बहुत बड़ा सबक है। सही मायने मे देखा जाए तो ऐसे बाबाओं के अंधविश्वास के भ्रमजाल को बढ़ावा देने मे अधिकांशत् जनता का अंधविश्वास ही कारण है। और अक्सर ऐसे घटनाक्रमों की शिकार ज्यादातर गरीब व अशिक्षित जनता ही होती है गरीब जनता ही अपनी जान गवांती है। दूसरा तथ्य यह है कि ऐसे बाबाओ के साम्राज्य को खड़ा करवाने मे और भोली भाली आम जनता को अंधविश्वास के भ्रमजाल मे फसाने में सबसे ज्यादा अहम भूमिका होती है
बाहुबली वर्ग की ,बड़े-बड़े अधिकारियों आदि की। विचारणीय विषय है कि ऐसे बाबा जो यह कहते हैं कि जनता से कोई चढ़ावा नही लिया जाता है कोई दक्षिणा आदि नही ली जाती है तो ऐसे बाबाओं के पास इतनी संपत्ति कहां से आती है जो ऐसे बाबा इतना ऐश ओ आराम इतनी विलासिता का जीवन जीते हैं। तो जगजाहिर है कि ज्यादातर बाहुबली वर्ग व अधिकारी वर्ग जो जरूरतमंदो की सहायता के नाम पर ऐसे बाबाओं के लिए ट्रस्ट आदि खुलवाते हैं ऐसे बाबाओं की सुख-सुविधाओं पर करोड़ों-लाखों खर्च करते हैं आश्रम आदि बनवाते है और अपने भ्रष्टाचार से कमाए हुए काले धन को यह बाहुबली व अधिकारी वर्ग सफेद करते हैं। ऐसे परिवारों की महिलाएं भी लाखो-करोडों ऐसे बाबाओं पर ऐसे सत्सगों पर खर्च करती हैं ऐसे सत्संगों मे सजधज कर निकलती हैं इन सब का क्या औचित्य है? ऐसे बाहुबली वर्ग व अधिकारी वर्ग यदि ऐसे बाबाओं के लिए खर्च करने की बजाए जरूरतमंदो के लिए खर्च करें जैसे गरीब होनहार छात्रों की शिक्षा के लिए, गरीब परिवार की बहन बेटियों के विवाह के लिए, निराश्रित व असहाय लोगों को घर-मकान आदि बनवाने मे सहायता करें, पीडित लोगो की मदद करें, जरूरतमंद महिलाओं व गरीब बच्चों के विकास के लिए खर्च करें।
जिससे जरूरतमंदो का भी भला हो और समाज का भी हित हो। लोगों के लिए अंधविश्वास और श्रृद्धा के फर्क को समझना बहुत जरूरी है। अंधविश्वास हमेशा बुराई और विनाश के रास्ते पर लेके जाता है। और ईश्वर मे व प्रकृति मे श्रृद्धा रखने वाला हमेशा सही-गलत की परख करता है हमेशा सच्चाई और सदगुणों के मार्ग पर चलता है। यद्यपि हम प्राचीन इतिहास को देखें तो असल मे जो वास्तविक संत हुए उन्होने कभी कोई भीड़ इकट्ठी नही की, कभी कोई आडम्बर नही किए, कभी विलासितापूर्ण सुख-सुविधाओं का निर्वाह नहीं किया। उनका आश्रयस्थल केवल जंगल और छोटी कुटिया हुआ करती थीं।

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ऐसे संतो का सम्पूर्ण जीवन तप और साधना में व्यतीत हुआ। तप और साधना मे ही लीन रहते हुए इन संतों ने अपना शरीर त्याग दिया। इन महान संतों द्वारा दिए हुए उपदेश आज भी विश्व विख्यात है जो मानव जाति को सद्मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं जैसे संत रविदास, कबीर दास, सूरदास, स्वामी विवेकानंद आदि। अतः जनता से मेरी अपील है कि अंधविश्वास और श्रृद्धा के फर्क को समझें सत्संग के सही अर्थ को पहचाने।

मनुष्य के प्रथम गुरु माता-पिता है जो हमें इस दुनिया में लाते हैं दूसरे गुरु हमारे शिक्षक हैं जो हमें शिक्षा देते हैं सद्गति का मार्ग दिखाते हैं और जो हर व्यक्ति का सबसे बड़ा गुरु है वह है समय जो जीवन की हर सच्चाई और अच्छाई बुराई से हमें अवगत कराता है जीवन का हर सबक सिखाता है। सही मायने में सत्संग का अर्थ होता है आध्यात्मिक ज्ञान, सद्गति का मार्ग, व्यभिचारों पर प्रतिबंध, अंधविश्वास का खंडन। माता-पिता की सेवा करना, पारिवारिक उत्तरदायित्वों को निभाना और जरूरतमंदों की सेवा करना आदि ही सही मायने में सत्संग की परिभाषा है।
हाथरस सत्संग जैसे मामलों में यदि देखा जाए तो जब व्यवस्था केवल अस्सी हजार लोगों के लिए ही थी तो दो लाख लोगों की भीड़ कैसे इकट्ठा हुई और ऐसे मामलों में शासन प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए ऐसे आयोजनों के लिए शासन प्रशासन को जनता की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अनुमति देनी चाहिए सुरक्षा का जायजा लिया जाना चाहिए तथा कड़ी सतर्कता बरतनी चाहिए जिससे कि ऐसे हादसों को रोका जा सके।
लेखक
डॉ मुन्नालाल भारतीय
समाज सेवी