संत रविदास जी की जयंती पर विशेष


Last Updated on 7 months by Dr Munna Lal Bhartiya

संत रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में सन 1450 में पूर्णिमा के अलग-अलग हुआ था इनकी जन्म की तारीख पर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं इनके पिता का नाम संतोख दास जी तथा माता का नाम कर्मा देवी था इनकी पत्नी का नाम लोना जी तथा पुत्र का नाम विजय दास जी था। संत रविदास बचपन से बहादुर और दैवीय शक्तियों से परिपूर्ण थे और ईश्वर पर अटूट आस्था रखते थे। लेकिन निम्न जाति का होने की वजह से उन्हें सदैव उच्च जाति के द्वारा उत्पन्न भेदभाव की वजह से बहुत संघर्ष करना पड़ा। वह चर्मकार का काम करते थे तथा सामाजिक समस्याओं की बुराइयों को दूर करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे उस समय निम्न जाति का होने की वजह से पूजा पाठ करने तथा मंदिर में जाने से भी रोका जाता था लेकिन उनका मानना था कि”ईश्वर ने इंसान बनाया है ना कि इंसान ने ईश्वर बनाया है” ईश्वर ने सभी व्यक्तियों को समान बनाया है बिना किसी भेदभाव के। संत रविदास की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक बार एक ब्राह्मण पुजारी ने संत रविदास की शिकायत राजा के दरबार में कर दी तथा यह आरोप लगाया कि उन्होंने धार्मिक संस्कारों से छेड़छाड़ की है राजा ने संत रविदास को दरबार में बुलाया तो उन्होंने अपना पक्ष रखा कि उन्होंने सिर्फ गैरजरूरी धार्मिक अंधविश्वासों को पूजा करने की विधि से हटाया है जिस कारण ब्राह्मण पुजारी नाराज है उनका मानना है कि उन्हीं का पूजा पाठ का तरीका सही है और वही श्रेष्ठ हैं ।

राजा ने रविदास और ब्राह्मण दोनों की श्रेष्ठता देखने के लिए एक प्रस्ताव रखा और कहा कि आप दोनों अपने अपने इष्ट देव की मूर्ति को लेकर गंगा नदी के घाट पर आना जिसकी मूर्ति पानी में तैरेगी वही श्रेष्ठ होगा। दोनों अपने अपने इष्ट देव की मूर्ति को लेकर घाट पर पहुंचे पहला अवसर मंदिर के पुजारी को प्रदान किया गया उसने बहुत से मंत्रों का उच्चारण कर बिल्कुल हल्की भार की मूर्ति सूती कपड़े में लपेटकर पानी में प्रवाहित कर दी लेकिन वह डूब गई । बाद में संत रविदास ने एक मूर्ति पानी में प्रवाहित की जो 40 किलोग्राम वजन की थी उन्होंने जैसे ही उस मूर्ति को पानी में प्रवाहित किया वह मूर्ति पानी में तैरने लगी यह देखने के बाद राजा ने संत रविदास जी को सच्चा व श्रेष्ठ संत घोषित किया । रविदास जी का मत-  “ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चांडाल के जो होवे गुण प्रवीण अर्थात गुणहीन व्यक्ति को पूजने से अच्छा है आप किसी निम्न जाति के व्यक्ति की पूजा करें जो कि गुणवान हो”  संत रविदास जी की मृत्यु के विषय में भी कई विद्वानों के अलग-अलग मत हैं । विद्वानों के मतानुसार 1520 ई में इनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई।


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