Last Updated on 3 months by Dr Munna Lal Bhartiya
दलितों की राजधानी कहे जाने वाले आगरा मे 90 के दशक मे ( 21-06-1990 ),(22-06-1990 ) में हुए चर्चित जातीय संघर्ष पनवारी कांड की वेदना आज भी लोगों के जेहन मे जिंदा है। इस जातीय संघर्ष मे अनेक निर्दोष परिवार बेघर हुए, जाटव समाज के लोगों की स्थिति दयनीय हो गई। उस समय शायद कोई कर्फ्यू का नाम भी नहीं जानता था लगभग 35 वर्ष बाद पनवारी कांड के पीड़ित परिवारों के पक्ष मे न्यायालय द्वारा 35 लोगों को दोषी का करार देते हुए 5 वर्ष की सजा सुनाई गई है। जो कि ज़्यादातर आरोपी इस समय बुजुर्ग हो गए है न्यायालय द्वारा पनवारी कांड पर लिया गया फैसला सराहनीय व स्वागत योग्य ओर ऐतिहासिक क्षण है ये फैसला ऐसे असहाय पीड़ित लोगों के लिए आशा की किरण है जो आज भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ कर दर-दर की ठोकरें खा रहे है उस समय पनवारी कांड को चुनौती के रूप मे लेते हुए अपनी जान की बाजी लगा कर आगरा के तत्कालीन एस. एस. पी कर्मवीर सिंह, जिलाधिकारी अमल कुमार वर्मा व सी. ओ सिटी किशन लाल द्वारा की गई निष्पक्ष कार्यवाही व तत्कालीन पुलिस प्रशासन द्वारा संभाली गई कमान सराहनीय रही।


पनवारी कांड की भयावहता ने संपूर्ण देश व प्रदेश को हिला दिया था उस समय पनवारी कांड के प्रमुख पीड़ित भरत सिंह कर्दम व उनका परिवार पनवारी गांव छोड कर हमारे क्षेत्र नगला अजीता में आए थे तब भरत सिंह के परिवार को नगला अजीता की पंचायती में आसरा भी हमारे व समाज के सहयोग से मिला था इनकी वयोवृद्ध दादी रेवती देवी पत्नी रामकरण का निधन भी पंचायती घर में हुआ था।
भरत सिंह जी का परिवार कुछ वर्षों तक किराए पर भी रहा नगला अजीता मे पनवारी गांव के जाटव समाज के कई अन्य परिवार भी नगला अजीता मे किराए पर आकर रहे बाद में उन्होंने अपनी-अपनी व्यवस्था कर ली। भरत सिंह के साथ तमाम तिरस्कार और अपनी जान की परवाह किए बिना मैं भरत सिंह कर्दम के साथ हमेशा मजबूती के साथ खड़ा रहा, पनवारी कांड के इस जातीय संघर्ष के विरुद्ध मेरे अंदर इतना जज्बा हुआ करता था कि भरत सिंह को कोई स्कूटर आदि चलाना नहीं आता था कोई वाहन की व्यव्स्था नही थी तब में अपने एक लमलेटा स्कूटर व राजदूत बाइक पर बैठा कर भरत सिंह को अधिकारियों के कार्यालयों में सुबह से शाम तक चक्कर काटता था, उस समय भरत सिंह व उनके परिवार को कुछ लोग घृणित नजर से भी देखते थे इस सब की परवाह न करते हुए पनवारी कांड के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए हम कितनी ही बार लखनऊ से दिल्ली तक गए।

पनवारी कांड सन् 1990 से ही मेरे सामाजिक व राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई उस समय मेरी उम्र करीब 24 वर्ष थी सन् 1989 में मेरी शादी हुई थी पनवारी कांड के समय मेरे विवाह को लगभग डेढ़ वर्ष हुआ था। पनवारी कांड के जातीय संघर्ष ने मुझे समाज के लिए कुछ करने का जज्बा दिया, पनवारी कांड के करुण कुंदन ने मेरी आवाज को बुलन्द किया पनवारी कांड के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए सन् 1992 मे जिला कांग्रेस कमेटी अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ (आगरा ) के महासचिव व उपाध्यक्ष पद पर नियुक्त हुआ और सन् 1994 तक इस पद पर रहा तथा भरत सिंह को भी कांग्रेस से जोड़ा सन् 1994 मे इस जातीय संघर्ष के विरुद्ध डॉ अंबेडकर जन एकता संघर्ष मंच आगरा ( उत्तर प्रदेश ) का गठन किया गया जिस में भरत सिंह जी को अध्यक्ष बनाया गया मैने उपाध्यक्ष का पद भार संभाला तथा स्व डॉ योगेश चन्द शर्मा मंडल महासचिव के पद पर रहे। हमने कितने ही राजनैतिक दलों से लेकर सामाजिक संगठनों तक अपनी आवाज उठाई सन् 2008 में अन्तर्राष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल में सदस्य के रूप में मेरे द्वारा पनवारी कांड के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए प्रमुखता से मुद्दा रखा गया।
तत्कालीन समय में एमनेस्टी इंटरनेशनल में मुद्दे को गंभीरता पूर्वक लेते हुए पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया इस संदर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडल आगरा आया था व अपनी रिपोर्ट भी बना कर ले गया था। आज समाजहित व जनहित के लिए मेरा जो सफर है इस सफर का श्रेय पनवारी कांड को ही जाता है।

सर्वसमाज के हित व जनहित के लिए मेरा यह संघर्ष और सफर आज भी जारी है और हमेशा जारी रहेगा।
लेखक/भवदीय
डॉ मुन्नालाल भारतीय
समाज सेवी
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