saint guru ravidas ji | गुरु रविदास जी की आध्यात्मिकता का महत्व

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Last Updated on 2 years by Dr Munna Lal Bhartiya

Saint Shiromani Guru Ravidas Jayanti 2023 

परिचय

गुरु रविदास जी का जीवन परिचय – 

संत शिरोमणि गुरु रविदास जी का जन्म 1377 ई० मैं वाराणसी में हुआ था । यह जाति से चर्मकार थे इनके पिता का नाम संतोख दास तथा माता का नाम कलसा देवी था। यह चमड़े का कार्य करते थे ।

गुरु रविदास जी की पूर्ण जानकारी –

संत शिरोमणि गुरु रविदास जी 14 century के महान संत थे, उन्हें संतो में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। गुरु रविदास जी को  शिक्षक का दर्जा भी दिया गया है रविदास जी ने अपने दोहों के द्वारा लोगों के मन में समानता का दीप जलाया और लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उनकी संगीत में भी रुचि थी उनके गीतों ने लोगों को बहुत प्रभावित किया।

गुरु रविदास जी का प्रारंभिक जीवन –

भक्ति आंदोलन एक सांस्कृतिक आंदोलन था, जो कि 13 से 17 वीं शताब्दी के बीच भारत में हुआ था। इस आंदोलन ने निम्न जाति के लोगों के साथ साथ सभी जाति व धर्म के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया।
गुरु रविदास जी को निम्न जाति का होने के कारण अपमान का बहुत सामना करना पड़ा और वह जाति भेदभाव के कारण प्रताड़ित भी हुए ।

दर्शन 

गुरु रविदास जी का दर्शन केंद्र –

गुरु रविदास जी का मानना था, कि ईश्वर से मिलने का रास्ता सभी के लिए खुला हुआ है सभी जाति व धर्म के लोग ईश्वर की आराधना कर सकते हैं वे कहते हैं कि प्रेम एक ऐसा रास्ता है जो लोगों के मन से छुआछूत जैसी घृणा भरी मानसिकता को बाहर निकाल सकता है प्रेम से हम दुनिया जीत सकते हैं ।

संत रविदास जी की पौराणिक कथाएं – 

एक ब्राह्मण पुजारी ने गुरु रविदास जी की शिकायत राजा से करी और उन पर आरोप लगाया कि रविदास ने धार्मिक, संस्कृति व संस्कारों से छेड़छाड़ की है। गुरु रविदास ने राजा के दरबार में अपना पक्ष रखा और कहा मैंने सिर्फ जो जरूरी नहीं वही धार्मिक अंधविश्वास को पूजा करने की विधि से हटाया है पुजारी जी का मानना है कि हम जिस तरीके से पूजा करते हैं वह तरीका सही है।

यही कारण है पुजारी जी के नाराज होने पर राजा ने पुजारी और रविदास के सापेक्ष एक प्रस्ताव रखा और कहा दोनों अपने इष्ट देव की मूर्ति को लेकर गंगा नदी के किनारे आना और जिसकी मूर्ति पानी में तेरेगी वही श्रेष्ठ व महान होगा। दोनों अपने इष्टदेव की मूर्ति को लेकर आते हैं

राजा ने सबसे पहले पुजारी से कहा मूर्ति को नदी में छोड़िए पुजारी ने बहुत से मंत्र उच्चारण किए और मूर्ति नदी में छोड़ दी और मूर्ति डूब गई। तत्पश्चात् रविदास जी अपने इष्टदेव की 40 किलोग्राम की भारी मूर्ति को नदी में छोड़ी तो वह मूर्ति पानी में तैरने लगी। जबकि पुजारी जी सबसे हल्की मूर्ति लाए थे और रविदास जी की मूर्ति 40 किलोग्राम की थी फिर भी वह तैर रही थी यह सब देखकर राजा ने रविदास जी को श्रेष्ठ व सच्चे संत रूप में स्वीकार किया।

रविदास जी का दोहा –

ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूज्य चरण चांडाल के जो होवे गुण प्रवीण अर्थात किसी गुणहीन उच्च व्यक्ति की पूजा करने से अच्छा है किसी ऐसे निम्न व्यक्ति की पूजा करनी जानी चाहिए जिसमें उच्च कोटि की विद्वत्ता हो ।
गुरु रविदास जी का स्वर्गवास सन् 1528 में हुआ था।

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