जातिवाद – आजाद भारत का घृणित स्वरूप

Last Updated on 2 years by Dr Munna Lal Bhartiya

जातिवाद – आजाद भारत का घृणित स्वरूप

देश में विकास की तरक्की के केवल खोखले दावे किए जाते हैं, जबकि सच्चाई इन सब के विपरीत होती है। सही मायने में देखा जाए तो आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी भारत पूरी तरह से आजाद se नहीं कहा जा सकता। आज भी भारतीय समाज कहीं न कहीं जातिवाद और वर्गभेद का शिकार है। गुलामी, शोषण और ऊंच-नीच की बिडियों में जकडा हुआ है।

जिसका परिणाम देश में आए दिन देखने को मिलता है। ऊंची जाति के नाम पर आए दिन अत्याचार होते हैं जैसे अभी हाल राजस्थान के जालौर में शिक्षक द्वारा बच्चे को पानी पीने के लिए इतना मारा कि बच्चे की मौत हो गई, वहीं एक महिला नेता द्वारा दलित महिला नौकरानी को सालों तक बंधक बनाकर रखना उसे तरह-तरह की यातनाएं देना, निम्न व दलित वर्ग का मंदिरों में प्रवेश पर रोक, बारात ना चढ़ने देना, हीन भावना की दृष्टि से देखना आदि जैसे शोषण और अत्याचार

आज भी भारतीय समाज में अपनी जड़ें जमाए हुए हैं यह बेहद शर्मनाक और विडंबना का विषय है जो भारतीय समाज पर एक कलंक के समान है। एक ओर हम विश्व गुरु बनने की तैयारी में है इस तरह भारत कैसे विश्व गुरु बन पाएगा? जहां लोगों में आपस में ही असमानता है जहां एक इंसान दूसरे इंसान को हीन भावना से परखता है।

भारत में जातिवाद और शिक्षा

भारतीय संविधान के अंतर्गत सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त हैं सभी नागरिक समान हैं। केंद्र व प्रदेश शासनों के अधीन अनेक योजनाएं चल रही हैं अनेक कानून बने हुए हैं शिक्षा के प्रति भी जागरूकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। ज्यादातर लोग शिक्षा के महत्व को समझ रहे हैं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। परंतु जातिवाद का दंश फिर भी पूरी तरह से खत्म नहीं हो रहा है चूंकि शायद हम शिक्षित होकर भी मानसिक गुलामी का शिकार हैं यह परिस्थितियां शिक्षा के महत्व पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।

भारत में जातिवाद

जातिवाद के इस दंश से अमानवीय घटनाओं, कुरीतियों और अंधविश्वास को बढ़ावा मिलता है जो भारतीय समाज को अंधकार में धकेलने का काम करता है। जातिवाद के इस दंश के साथ देश व समाज की उन्नति और समृद्धि की कल्पना केवल एक स्वप्न के समान है। असमानता की भावना और जातिवाद देश की तरक्की की सबसे बड़ी बाधा है।

सबसे पहले लोगों को अपनी संकीर्ण मानसिकता को बदलना होगा। क्या देश के कर्णधारों ने देश को अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से आज़ाद कराते वक़्त ऐसे ही देश का स्वप्न देखा था। आज समाज में व्याप्त असमानता व जातिवाद जैसी कुरीतियाँ कर्णधारों के बलिदान को भी अपमानित करतीं हैं जिन्होंने आजादी के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।

क्योंकि देश का प्रत्येक नागरिक देश का भविष्य निर्माता होता है अतः जातिवाद, वर्गभेद, असमानता आदि जैसी बुराइयों को समय रहते खत्म करना होगा जिससे देश का भविष्य सुरक्षित हो सके। साथ ही संविधान की उद्देशिका को प्रत्येक नागरिक को अपने जीवन में उतारना जरूरी है। तभी हम देश को विश्व गुरु व महाशक्ति बनाने में पूर्णत सफल हो सकते हैं। और तभी आजादी के सही मायने होंगे।

यह भी पढ़े – जातिवाद व ऊंच नीच के सामने कैसा आजाद भारत

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