प्रथम लोकसभा में पदार्पण करने वाले दलित सांसद जाटव शब्द के जन्मदाता दादा साहेब राय बहादुर डॉ मानिक चंद जाटव वीर जी

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Last Updated on 9 months by Dr Munna Lal Bhartiya

जाटव शब्द के जन्मदाता दादा साहेब डॉक्टर मानिक चंद जाटव जी का जन्म 11-11-1897 में आगरा में हुआ । इनकी शिक्षा सेंट जॉन्स कॉलेज आगरा से हुई। 

दादा साहब डॉ.मानिक चंद जाटव वीर

एक निर्भीक, साहसी, स्वाभिमानी ,कार्यशील क्रांतिकारी समाज सुधारक थे । दादा साहब जातिवाद के कट्टर विरोधी थे । दलित समाज के उत्थान में दादा साहेब का महत्वपूर्ण योगदान है दादा साहब ने शहरों व गांवों के दलित समाज में शिक्षा का प्रचार  प्रसार कर लोगों को शिक्षा के प्रति जागरुक कर शिक्षा के महत्व से परिचित कराया।


शिक्षा हेतु निरंतर संघर्ष

आज दादा साहब के शिक्षा हेतु किए गए निरंतर संघर्ष का परिणाम है कि हमारा समाज शिक्षा के प्रति जागरूक हो रहा है। दादा साहब ने सन् 1938 – 45 तक आगरा में शिक्षा बोर्ड के अनुसूचित जाति के चेयरमैन का पदभार संभाला । सन् 1937 मैं आगरा में एम.सी.वीर इंस्टिट्यूट की स्थापना की। विद्यालय और छात्रावासों की स्थापना की परंतु यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि दादा साहेब द्वारा स्थापित इंस्टिट्यूट को कितने वर्ष बीत जाने के बावजूद कई सरकारें आई और गई परंतु किसी भी शासन ने इस इंस्टिट्यूट को इंटर कॉलेज तथा डिग्री कॉलेज की मान्यता देने के लिए ध्यान नहीं दिया ।
 दादासाहेब ने दलित उत्थान कार्यों के साथ-साथ आजादी के आंदोलनों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । दादा साहेब का व्यक्तित्व अत्यंत रौबीला व प्रभावशाली था ।

दादा साहब के दलित उत्थान कार्य, समाज सुधार कार्य व राष्ट्र के प्रति पूर्ण निष्ठा से प्रभावित होकर तत्कालीन वायसराय ने सन् 1943 में दादा साहेब को रायबहादुर की उपाधि से सम्मानित किया । परंतु सन 1946 में भारत रत्न बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर जी द्वारा स्थापित शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के आव्हान के कारण दादा साहब को सत्याग्रह आंदोलन में जेल की यात्रा करनी पड़ी जिसके फलस्वरूप भारत के अन्य दलित नेताओं की तरह दादा साहब ने भी रायबहादुर की उपाधि को वापस कर दिया । डॉ दादा साहेब, बाबा साहब अंबेडकर के बहुत करीबी थे और बाबा साहब से बहुत प्रभावित थे । 10 मार्च 1946 को डॉक्टर अंबेडकर को प्रथम बार आगरा में लाने का श्रेय दादा साहेब को ही है ।

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दादासाहेब सन् 1952 में राजस्थान के सवाई माधोपुर के संसदीय क्षेत्र से कृषि कार लोग पार्टी के प्रत्याशी के रूप में प्रथम लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए । सन् 1917 में दादा साहेब जाटव महासभा के संस्थापक बने तथा सन् 1934 में उन्होंने “जीवन ज्योति” व “जाटव ग्रंथमाला” मासिक पत्रिकाएं भी छपवाई । 

दादा साहेब का समाज व राष्ट्र के दलित नेताओं में महत्वपूर्ण स्थान है दादा साहब ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने व दलित वर्ग उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष किया । दादा साहब दलित समाज के ऐसे प्रथम नागरिक बने जिन्होंने अपने समाज को जाटव शब्द देकर गौरव प्रदान किया । दादासाहेब ने एकता का संदेश दिया तथा समाज व राष्ट्र के संपूर्ण विकास हेतु दादा साहेब डॉक्टर मानिक चंद जाटव वीर जी का कथन है – 

याद रखना मान को मोह ना करना धन धाम का,जब मान ही जाता रहा तो धन किस काम का।

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