Last Updated on 1 year by Dr Munna Lal Bhartiya
संत शिरोमणि गुरु रविदास जी का जीवन परिचय
संत शिरोमणी गुरु रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोवर्धनपुर गाँव में चर्मकार जाति के एक गरीब परिवार मे हुआ था। इनकी माता जी का नाम कलसा देवी तथा पिता जी का नाम सन्तोख दास था।
इनकी पत्नी का नाम लोनाजी एवं इनके पुत्र का नाम श्री विजयदास जी था। संत रविदास शिशुरूप से ही अलौकिक शक्ति से परिपूर्ण थे, बचपन मे इनकी बुआ जी इनके लिए एक चमडे से बना खरगोश खेलने के लिये लायी थी उस चमडे के खरगोश को देखकर संत रविदास उससे खेलने लगे, उसे अपने पैरों से आगे के तरफ धकेलने लगे मानो बाल रूप मे चारपाई पर लेटे हुए रविदास जी खरगोश से खेलने के लिए कह रहे हो।
यह क्रिया देखकर उनके घरवाले बहुत खुश हो रहे थे तभी पैरो से धकेलते धकेलते वह खरगोश दौड़ने लगा और रविदास जी के पास उछल कूद करने लगा यह दृश्य देखकर उनका परिवार आश्चर्य चकित रह गया जब वह बड़े हुए तो उन्होने चर्मकार जाति के होने के कारण उन्होने जीवन मे बहुत संघर्ष किया, उनकी इश्वर में पूर्ण रूप से आस्था थी। किन्तु उच्च जाति के लोग मानते थे किए पूजा पाठ सिर्फ उच्च जाति वालो के लिये है ईश्वर सिर्फ उनका ही है इसलिए वह नही चाहते थे कि रविदास इश्वर का ध्यान करे।
संत गुरु रविदास जी अलौकिक शक्ति से परिपूर्ण
एक बार की घटना है कि कुछ ब्राह्मण गंगाजी स्नान के लिए जा रहे थे और रास्ते में उन्होंने संत रविदास जी से पूछा की क्या वह साथ गंगा स्नान के लिए चलेंगे तो उन्होन साथ आने से इंकार कर दिया लेकिन उन ब्राह्मणों को उन्होंने एक दमडी (सिक्का) दिया और कहा जब गंगा मैया हाथ आगे बढ़ाए तभी उन्हें यह दमड़ी दे देना सारे ब्राह्मण गंगा जी पहुंचकर स्नान करने लगे और अंत में वह दमड़ी एक ब्राह्मण ने अपनी जेब से निकली तभी गंगा मैया ने हाथ आगे बढ़ाया तो उन्होंने वह दमड़ी गंगा मैया के हाथ में रख दी।
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गंगा मैया ने संत रविदास जी को देने के लिए एक कंगन भेंट किया और उन ब्राह्मणों से कहा कि यह कंगन वह उनके भक्त रविदास को भेंट कर दें कंगन देखकर ब्राह्मणों के मन में लालच जाग गया उन्होंने कंगन रविदास जी को देने की वजह वह बहुमूल्य कंगन राजा को महारानी के लिए भेंट कर दिया। वह कंगन पाकर महारानी इतनी खुश हुई कि वह दूसरा कंगन भी मांगने लगी राजा ने उन ब्राह्मणों को आदेश दिया कि दूसरा कंगन भी महारानी के लिए लाकर दिया जाए नहीं तो तुम सभी को मृत्युदंड दिया जाएगा।
यह सुनकर सारे ब्राह्मण रोते हुए संत रविदास के चरणों में आग्रह करने लगे कि वह उनकी जान बचा ले उन्होंने सारी आप बीती रविदास जी को सुनाई और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी तभी रविदास जी ने चमड़ा गलाने वाली कटौती उठाई और गंगा मैया का स्मरण कर कटौती में हाथ डाला और वैसा ही बहुमूल्य कंगन निकालकर उन ब्राह्मणों को दे दिया और उनको कहा कि यह कंगन महारानी को भेंट करके उनसे क्षमा मांग कर अपनी जान बचा ले तभी एक ब्राह्मण ने पूछा यह कंगन तो गंगा मैया ने दिया था। तो दूसरा कंगन कैसे कटौती से निकला संत रविदास ने उत्तर दिया कि दूसरा कंगन भी गंगा मैया ने दिया है और उन ब्राह्मणों से बोले कि मन चंगा तो कटौती में गंगा अर्थात जहां सच्चे मन से स्मरण करोगे वही ईश्वर प्रकट हो जाएंगे ।