जानिए कैसा था डॉ भीमराव अंबेडकर जी का प्रतिभाशाली व्यक्तित्व क्यों वह सब के लिए प्रेरणा हैं

Last Updated on 2 years by Dr Munna Lal Bhartiya

शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान

डॉ भीमराव अंबेडकर जी जब बड़ौदा से लौटे थे तो उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना पूर्ण योगदान दिया, वह 11 नवंबर 1918 को अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त किये गए थे बॉम्बे के सरकारी कॉलेज में जिसका नाम सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स था।

एक निम्न जाति का अध्यापक होने की वजह से शुरुआत में विद्यार्थी उनसे पढ़ने की बजाय उनसे दूर भागते थे लेकिन डॉ अंबेडकर की योग्यता गहन अध्ययन और रोचक विवेचना शक्ति से विद्यार्थी धीरे धीरे प्रभावित होने लगे और कई बार तो ऐसा भी होता था कि अन्य विद्यालयों के विद्यार्थी भी उनसे पढ़ने के लिए आते थे कुछ समय ऐसा ही चलता रहा और वह धीरे-धीरे कॉलेज में लोकप्रिय प्रोफेसर बन गए।
लेकिन शिक्षा जगत में कार्य करना उनकी पहली प्राथमिकता नहीं थी लेकिन वह इस कार्य को भी पूर्ण कर्तव्य और निष्ठा के साथ करते थे।

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जून 1925 से मार्च 1928 तक लॉ के पार्ट टाइम लेक्चरर भी रहे सिडेनहम कॉलेज में उनके अध्यापन के कार्य से प्रभावित होकर मुंबई सरकार ने उन्हें 1 जून 1935 को गवर्नमेंट लॉ कॉलेज का प्रिंसिपल नियुक्त किया। जब डॉ अंबेडकर को गवर्नमेंट लॉ कॉलेज (Law College) का प्रिंसिपल बनाया गया था तो उन्होंने उस पद के अनुसार कॉलेज को एक शैक्षणिक एवं नैतिक स्तर पर काफी ऊंचा उठाया और प्रतिष्ठा के शिखर तक पहुंचाया। डॉ अंबेडकर के अनुसार एक अध्यापक में प्रशासनिक क्षमता सूझबूझ होना अत्यंत आवश्यक है।

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एक श्रेष्ठ वकील के रूप

डॉ अंबेडकर ने बैरिस्टर के रूप में जून 1923 में अपने कार्य की शुरुआत की, अछूत व निम्न जाति के होने के कारण शुरुआत में वकालत में बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं रह पाते थे क्योंकि उन्हें बैठने के लिए स्थान भी नहीं दिया जाता था, उन्होंने मि.जिनवाला की सहायता से कोर्ट में बैठने का इंतजाम किया लेकिन कोई भी उनके पास नहीं आना चाहता था जिससे वह खाली हाथ ही लौट आते थे लेकिन कुछ समय बाद एक समय ऐसा भी आया जब डॉ अंबेडकर को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर मिला।

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एक बार कुछ वर्गों द्वारा निम्न वर्ग के 3 लोग बागडें जेधे तथा जवालकर पर जाति व्यवस्था के संदर्भ में एक मुकदमा दायर किया । जब यह मुकदमा सेशन जज के सामने आया तब बाबासाहेब ने बड़ी ही योग्यता पूर्ण निष्पक्षता के साथ मुकदमे की वकालत की और अक्टूबर 1926 में वह मुकदमे में विजयी हुए। तथा एक बार ऐसा मुकदमा आया जिससे एक व्यक्ति को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी थी उस मुकदमे में मैं कोई जान नहीं थी परंतु उस मुकदमे को भी उन्होंने अपने हाथ में लिया और अपनी सूझबूझ से उस मुकदमे को भी जीता बाबा साहब के पास ऐसे मुकदमे भी आते थे जिनमें कोई जान नहीं होती थी लेकिन वह अपनी योग्यता और तर्क शक्ति के कारण उन मुकदमों को भी जीत लिया करते थे। एक श्रेष्ठ वकील बनने में तथा अन्य क्षेत्रों में भी सफल होने में उनका एक महत्वपूर्ण गुण था एक श्रेष्ठ वक्ता होना।

बाबा साहब को कई भाषाओं का ज्ञान था जैसे हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, मराठी, जर्मन, आदि। उनके पास ज्ञान का भंडार था, उनका यह ज्ञान आदर्श का अनुसरण और कर्तव्यनिष्ठा ने ही उन्हें एक प्रभावशाली वक्ता या बैरिस्टर के रूप में पहचान दिलाई। बाबा साहब का व्यक्तित्व बहुत ही सरल स्वभाव का था और बात हमेशा तार्किक करते थे। बाबा साहब के भाषण हमेशा चर्चाओं के विषय बने रहते थे वह क्षेत्र व राज्य के हिसाब से उसी भाषा के अनुरूप भाषण दिया करते थे संसद में वह अंग्रेजी में भाषण देते थे उनका दिया हुआ प्रत्येक भाषण अपने आप में अद्भुत होता था और प्रत्येक भाषण प्रेरणादायी होता था।

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