Last Updated on 2 years by Dr Munna Lal Bhartiya
Written By : Sanjay Kumar
आज का विषय, रिश्तो का प्रैक्टिकली होना पुराने समय में अधिकतर रिश्ते दिल से निभाए जाते थे, लेकिन आज के समय में अधिकतर रिश्ते दिमाग से चलना शुरू हो गए हैं यानी शुद्ध भाषा में कह सकते हैं कि आज के रिश्ते प्रैक्टिकली हो गए हैं। अगर मुझे जरूरत है तो आप के साथ मेरा रिश्ता है यदि मेरी आपसे कोई जरूरत नहीं है तो आपके साथ मेरा किसी प्रकार का कोई रिश्ता नहीं है।
पुराने समय में यदि किसी गांव में किसी एक का कोई रिश्तेदार आता था तो वह रिश्तेदार पूरे गांव का रिश्तेदार माना जाता था पर आज प्रैक्टिकली जिंदगी में अधिकतर अपने घर का भी रिश्तेदार अपना रिश्तेदार नहीं माना जाता है जब से एकल परिवार की परंपरा ने जन्म लिया है जब से रिश्ते प्रैक्टिकली अधिकतर होते जा रहे हैं ।
Meaning of relationship
आज के प्रैक्टिकल युग में यदि कोई व्यक्ति कितना भी कहे कि मैं तुम्हारा खास हूं पर सामने वाला उस पर विश्वास नहीं करेगा क्योंकि प्रैक्टिकली युग में जमाना विश्वास का भी नहीं रहा है क्योंकि विश्वास व्यापारिक होता जा रहा है आज के प्रैक्टिकल रिश्तो में यह स्थिति हो गई है यदि किसी व्यक्ति ने कोई नेगेटिव बात बोल दी तो उसको इतना ट्रेंड चल जाता है कि बात एक कान से दूसरें कान में तुरंत पहुँचती हैं लोगों से ज्यादा शेयर करने लग जाते हैं तो लोगों को लगने लगता है कि यह गलत नहीं है यह सच है पर सच तो यह है कि हम खुद को व अपने परिवार को सबको भूलते जा रहे हैं ।
हम आधुनिकता की ऐसी दौड़ में व्यस्त हो गए हैं, जिसका कोई अंत नहीं है ज्यादा सुविधाओं के लालच में खुद से अपने परिवार से व अपने रिश्तों से खिलवाड़ करते जा रहे हैं किसी जमाने में सुकून की जिंदगी थी कि सूखे अचार से सूखी रोटी खाने पर भी वह आनंद आता था कि अपने अंदर तक की अंतर आत्मा तृप्त हो जाती थी क्योंकि उस रोटी में उस अचार में अपनेपन का भाव होता था।
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आज हम बड़े बड़े होटलों में ढाबों पर व अच्छे मकानों में खाना बनाकर खा भी रहे हैं सेल्फी लेकर लोगों को दिखा भी रहें पर सच में दिल से बहुत कुछ अधूरा लगता है सबको फोटो के माध्यम से वीडियो के माध्यम से लोगों को दिखा रहे हैं कि हम बहुत खुश हैं पर सच में तो यह है कि हम वास्तव में खुश नहीं है क्योंकि हम अंदर की खुशी को भूल चुके हैं इंसान की असली खुशी तो इसमें है कि प्रकृति के साथ प्रकृति से प्यार करते हुए जीवन को जीना सीखे प्रकृति ने हमें बहुत कुछ सिखाया है जिस पौधे को जिस जगह पर लगाया जाता है बट वृक्ष बन जाता है फल देता है बीज देता है पर वह अपनी जड़ों को छोड़कर कभी नहीं जाता है पर हम अपने स्वार्थ की खातिर अपनी जड़ों को छोड़कर अपनी अपनी सुख-सुविधाओं को बढ़ाने के लिए अपनी जड़ों को छोड़कर जाने कहां-कहां भटकते रहते हैं ऐसी जाने बहुत सारी वजह हैं जिनसे आजकल रिश्ते प्रैक्टिकली होते जा रहे हैं
इस आधुनिकता के युग में प्रैक्टिकल युग में किस ने सच कहा है किसी भी इंसान की परेशानी दूसरों के लिए तमाशा बन गई है लोग तमाशा देखते हैं अच्छा बुरा कहते हुए चले जाते हैं और यदि आने वाले समय पर हम बदलाव नहीं लाए तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं कर पायेगी। क्या कभी किसी जीव जंतु जानवर को देखा है अपने स्वार्थ की बात करते हुए वह जहां भी होंगे जैसे भी होंगे एक साथ खा रहे होंगे या एक साथ उड़ रहे होंगे या एक जगह पर बैठे होंगे पर कभी एक दूसरे से रूठ कर टूट कर दुश्मनी वाले भाव को नहीं ला रहे होंगे हमने पुरानी पीढ़ियों के लोगों से बात करते हुए सुना है हमारे जमाने में ऐसा होता था।
हमारे जमाने में शादियां ऐसी होती थी हमारे जमाने में बीस -बीस दिन शादियों में लग जाते थे क्या आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या हम इस प्रकार की बातें कर पाएंगे शायद नहीं मैं यह भी मानता हूं कि संसार का विकसित होना बहुत आवश्यक है जो हमारी पिछली पीढ़ियों ने जो विकास दिया है विज्ञान के नए नए अविष्कारों को नए नए आयाम को कायम किया है उस को आगे बढ़ाना हम सबकी जिम्मेदारी है इसके साथ-साथ हम सबकी सच्चे और अच्छे रिश्तों को जीने की जिम्मेदारी भी हम सब की है मेरे कहे हुए शब्दों से यदि कोई व्यक्ति आघात हुआ है तो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं पर सच तो यह है कि सच को किसी भी रूप में रखो वह सच ही रहेगा प्रकृति के दिए हुए सच्चे रिश्ते ही सब समस्याओं का हल है।