दलित साहित्य लेखन के ग्रंथकार भारत रत्न डॉ भीमराव आंबेडकर जी को ही क्यों माना जाता है

Last Updated on 2 years by Dr Munna Lal Bhartiya

संविधान निर्माता भारत रत्न डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का जन्म संघर्ष बहुत ही अनुकरणीय एवं प्रेरक है। डॉ अंबेडकर के विविध कार्यक्षेत्र थे और प्रत्येक क्षेत्र में उन्होंने अपना अमूल्य योगदान दिया। जिनमें से एक है दलित साहित्य लेखन का आरंभ।

डॉ मुन्नालाल भारतीय के अनुसार भारतीय समाज में छुआछूत का कलंक सदियों से विद्वान है इस कलंक को खत्म करने के लिए डॉ.अंबेडकर ने इस कुरीति को कलम बंद करना प्रारंभ किया उन्होंने दबे, कुचले शोषित समाज को जागृत करने के लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया जैसे बहिष्कृत भारत, मूक नायक आदि अनेक ग्रंथ लिखे जिनमें प्रमुख हैं हू वर शूद्राज, द बुद्ध एंड हिज धम्म, अछूत कौन थे और वह अछूत कैसे बने आदि ।

उनका यही लेखन दलित चेतना का सतत स्त्रोत है उनके साहित्य मुख्यत दो भाषाओं में प्रकाशित हुए मराठी व अंग्रेजी ।उनके साहित्य ने शोषितों को उनके अस्तित्व का एहसास करवाया उन्हें अपने अधिकारों के लिए आंदोलन किया उन्हें यह एहसास करवाया कि शोषित समाज इस देश का मूल निवासी है और उसे भारत की राजनीतिक सत्ता में न्यायोचित स्थान का पूर्ण अधिकार है इस प्रकार शोषितों को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य डॉ.अंबेडकर ने किया।

सदियों से सोए हुए दलित समाज को अंबेडकर ने जगाया उनके लिए यह कार्य इतना आसान नहीं था परंतु अपने अथक प्रयासों से उन्होंने इस कार्य को संभव बना दिया। और डॉ.अंबेडकर दलित साहित्य के प्रेरणा के रूप में उभरे उन्होंने जो संकल्प लिया था कि वह अपनी ज्ञान साधना व शिक्षा के द्वारा समाज के प्रत्येक क्षेत्र को नवीन दिशा प्रदान करेंगे, समाज में विद्यमान कुरीतियों को खत्म करने के लिए प्रयासरत रहेंगे उन्होंने अपने संकल्प को बखूबी पूरा किया।

वह आजीवन एक अथक समाज सुधारक के रूप में संघर्षरत रहे तथा पीड़ित, शोषित व उपेक्षित समाज की आवाज बने। उनके संकल्प का ही महत्वपूर्ण अंग था उनके द्वारा दलित साहित्य लेखन का आरंभ।

     लेखक
डॉ मुन्नालाल भारतीय
समाज सेवी

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