Last Updated on 2 years by Dr Munna Lal Bhartiya
Gautam Buddha
Hindi Motivational Story
एक दिन मगध राज्य में तथागत गौतम बुद्ध का आगमन हुआ उनके आने की खबर से पूरे पाटलिपुत्र में खुशियां छा गई मगध के राजा बिंदुसार ने उनका स्वागत खूब हर्ष और उल्लास से किया तथागत बुद्ध के पैर पढ़ते ही पूरे मगध में खुशियों के दीप जल उठे पूरा मगध रोशनी से जगमगा रहा था। जैसे ही तथागत बुद्ध ने राज महल में प्रवेश किया राजा बिंदुसार ने सर्वप्रथम तथागत बुद्ध का आशीर्वाद ग्रहण किया और उन्हें बहुमूल्य वस्तुएं भेंट की तथा बिंदुसार के मंत्री और सैनिकों ने भी बुद्ध का स्वागत कर भेंट प्रदान की और उनका आशीर्वाद लिया। तथागत बुद्ध ने उन सभी की भेंट की हुई बहुमूल्य वस्तुएं हीरे जवाहरात सोना चांदी इत्यादि जैसी वस्तुओं को एक ही हाथ से ग्रहण किया उसके बाद रांची की प्रजा ने उनका स्वागत किया। उन लोगों ने भी तथागत बुद्ध को कई सारी वस्तुएं भेंट की उन सभी लोगों की भी उपहार स्वरूप दी गई वस्तुएं तथागत बुद्ध ने एक ही हाथ से स्वीकार कर ली। तभी महल में एक निर्धन बुढ़िया ने प्रवेश किया वह बुढ़िया तथागत बुद्ध के लिए उपहार में आधा खाया हुआ फल लेकर आई थी उस निर्धन बुढ़िया ने बुद्ध को बताया कि जब उसे उनके आने की खबर हुई तब वह बुढ़िया उस फल को खा रही थी उसके पास आधे खाए हुए फल के अलावा आपको को देने के लिए कुछ भी नहीं है
उस बुढ़िया ने कहा कि आप मेरी यह भेंट स्वीकार करें। तथागत बुद्ध ने अपने दोनों हाथों से उस बुढ़िया की भेंट स्वीकार की पूरा राज्य आश्चर्यचिकत होकर इस दृश्य को देख रहा था। यह सब देखकर महाराजा बिंदुसार ने महात्मा बुद्ध से प्रश्न किया कि आपने पूरे राज्य की बहुमूल्य वस्तुओं को भेंट स्वरूप एक हाथ से स्वीकार किया लेकिन इस झूठे फल को अपने दोनों हाथों से स्वीकार किया तथागत बुद्ध ने उत्तर दिया कि भेंट की गई वस्तुएं बहुमूल्य है किंतु यह फल मेरे लिए अनमोल है आप सभी ने जो कुछ मुझे दान दिया उसे दान देने के बाद आपकी जीवन शैली पर तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन इस निर्धन बुढ़िया ने अपने मुंह का निवाला मुझे दे दिया मेरी वजह से पूर्णतः अपनी भूख भी इसने शांत नहीं की उन्होंने कहा कि किसी को अपने मुंह का निवाला देना इस संसार में सबसे बड़ा दान होता है खुद भूखे रहकर किसी और का पेट भरने जैसा कार्य करना आसान नहीं होता इसलिए राजन किसी भूखे को खाना खिलाना पुण्य का काम है लेकिन खुद भूखे रहकर अपने मुंह का निवाला किसी और को देना ही सबसे बड़ा धन हैएक दिन मगध राज्य में तथागत गौतम बुद्ध का आगमन हुआ उनके आने की खबर से पूरे पाटलिपुत्र में खुशियां छा गई
सबसे बड़ा दान
मगध के राजा बिंदुसार ने उनका स्वागत खूब हर्ष और उल्लास से किया तथागत बुद्ध के पैर पढ़ते ही पूरे मगध में खुशियों के दीप जल उठे पूरा मगध रोशनी से जगमग आ रहा था। जैसे ही तथागत बुद्ध ने राज महल में प्रवेश किया राजा बिंदुसार ने सर्वप्रथम तथागत बुद्ध का आशीर्वाद ग्रहण किया और उन्हें बहुमूल्य वस्तुएं भेंट की उसके बाद बिंदुसार के मंत्री और सैनिकों ने उनका स्वागत कर बैठ प्रदान की और उनका आशीर्वाद लिया तथागत बुद्ध ने उन सभी की बेटी हुई बहुमूल्य वस्तुएं हीरे जवाहरात सोना चांदी इत्यादि जैसी वस्तुओं को एक ही हाथ से ग्रहण किया उसके बाद रांची की प्रजा ने उनका स्वागत किया उन लोगों ने भी तथागत बुद्ध को कई सारी वस्तुएं भेंट की उन सभी लोगों की भी उपहार स्वरूप दी गई वस्तुएं तथागतबुद्ध ने एक ही हाथ से स्वीकार कर ली तभी महल में एक निर्धन बुढ़िया ने प्रवेश किया वह बुढ़िया तथागत बुद्ध के लिए उपहार में आधा खाया हुआ फल लेकर आई थी उस निर्धन बुढ़िया मैं बुध को बताया कि जब उसे उनके आने की खबर हुई तो वह बुढ़िया उस पल को खा रही थी उसे आगे खाए हुए फल के अलावा उसके बाद आपको देने के लिए कुछ भी नहीं उस बुढ़िया ने कहा कि आप मेरी यह भेंट स्वीकार करें। तथागत बुद्ध ने अपने दोनों हाथों से उस बुढ़िया की भेंट स्वीकार की पूरा राज्य आश्चर्यचिकत होकर इस दृश्य को देख रहा था महाराजा बिंदुसार ने महात्मा बुध से प्रश्न किया कि आपने पूरे राज्य की बहुमूल्य वस्तुओं को भेंट स्वरूप एक हाथ से स्वीकार किए लेकिन इस झूठे फल को अपने दोनों हाथों से स्वीकार किया
तथागतबुद्ध ने उत्तर दिया कि भेंट की गई वस्तुएं बहुमूल्य है किंतु यह फल मेरे लिए अनमोल है आप सभी ने जो कुछ मुझे दान दिया उसे दान देने के बाद आपकी जीवनशैली पर तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन इस निर्धन बुढ़िया ने अपने मुंह का निवाला मुझे दे दिया मेरी वजह से पूर्ण थे अपनी भूख में इसने शांत नहीं की उन्होंने कहा कि किसी को अपने मुंह निवाला देना इस संसार में सबसे बड़ा दान होता है खुद भूखे रहकर किसी और का पेट भरने जैसा कार्य करना आसान नहीं होता इसलिए राजन किसी भूखे को खाना खिलाना पुण्य का काम है लेकिन खुद भूखे रहकर अपने मुंह का निवाला किसी और को देना ही सबसे बड़ा दान है।